Quantcast
Channel: मनोज
Viewing all articles
Browse latest Browse all 465

299. साम्प्रदायिक फूट - 21 दिनों का उपवास

$
0
0

राष्ट्रीय आन्दोलन

299. साम्प्रदायिक फूट - 21 दिनों का उपवास



1924

राजनीति से दूर रहने के इस दौर में गांधीजी का उद्देश्य भारतीयों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देना था। चारों ओर देखने पर उन्हें जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि 'देश के सामने तत्काल समाधान के लिए एकमात्र प्रश्न हिंदू-मुस्लिम प्रश्न है। मैं श्री जिन्ना से सहमत हूं,'उन्होंने कहा, 'कि हिंदू-मुस्लिम एकता का मतलब स्वराज है... इससे अधिक महत्वपूर्ण और अधिक दबाव वाला कोई प्रश्न नहीं है।'गांधीजी ने यंग इंडिया के 29 मई, 1924 के पूरे अंक को हिंदू-मुस्लिम तनाव, इसके कारण और समाधान पर 6000 शब्दों के अपने लेख के लिए समर्पित किया। दंगों में वृद्धि को देखते हुए, उन्होंने यह राय व्यक्त की कि यह सब 'अहिंसा के प्रसार के खिलाफ एक प्रतिक्रिया है। मुझे लगता है कि हिंसा की लहर आ रही है। हिंदू-मुस्लिम तनाव इस थकावट का एक तीव्र चरण है।'

1924 में देश में अनियंत्रित साम्प्रदायिक फूट से गांधीजी काफी निराश थे। असहयोग आंदोलन के उभार के दिनों की हिंदू-मुस्लिम एकता की तो अब केवल याद भर रह गई थी। हिंदू और मुस्लिम, दोनों प्रकार के संप्रदायवाद में जैसी वृद्धि हुई वैसी कभी नहीं हुई। साम्प्रदायिक संगठनों में वृद्धि हुई और राजनीतिक गठजोड़ों का आधार अधिकाधिक सांप्रदायिक होने लगा। पारस्परिक विश्वास का स्थान अविश्वास ने ले लिया था। कई कांग्रेसी नेता यह मानते थे कि ख़िलाफ़त और असहयोग आंदोलनों के जुड़ जाने से मुसलमानों में राजनैतिक जागृति के नाम पर हानिप्रद सांप्रदायिकता ही पनपी है। इस सांप्रदायिकता की आग में ब्रिटिश सहारा घी का काम कर रही थी। उधर मुस्लिम नेता यह सोच रहे थे कि कांग्रेस से हाथ मिलाने की जल्दबाज़ी से मुसलमान असुरक्षित ही हुए हैं। पारस्परिक संदेह और भय काफी गहरा गए थे। एक-दूसरे को दोनों कौमें फ़रेब और बेईमान ही नज़र आती थीं। इस बीच कमाल अतातुर्क के नेतृत्व में तुर्कों ने ख़ुद ही ख़िलाफ़त को ख़त्म कर दिया था और उसकी रक्षा के बारे में भारतीय मुसलमानों के जिहाद का आधार ही समाप्त हो गया था। मुसलमानों को अब हिंदुओं के समर्थन की ज़रूरत नहीं थी। साथ ही अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ उनकी चिढ़ की धार कुंद हो गई थी। जब तुर्क शासकों ने ख़िलाफ़त को समाप्त कर दिया,तो मुस्लिम लीग को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए?लीग ने लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए जिन्ना को बुलाया। जिन्ना ने हिन्दू-मुस्लिम बीच एकता और परस्पर विश्वास की ज़रुरत को बताते हुए कहा था,मैं कहता हूँ कि जिस दिन हिन्दू और मुसलमान एक हो, हिन्दुस्तान को डोमिनियन (उत्तरदायी) सरकार हासिल हो जाएगी। गांधीजी ने यह सुनकर कहा था,मैं मिस्टर जिन्ना से सहमत हूँ कि हिन्दू-मुस्लिम एकता का मतलब स्वराज है।लेकिन हिन्दू और मुसलमानों के बीच संदेह और कटुता घटने की जगह बढी ही। गांधीजी और जिन्ना एक-दूसरे से मिले और एक एकता सम्मेलन में एक साथ बैठे,पर इसका कोई लाभदायक फल प्राप्त नहीं हुआ।

साल के अंत में गांधीजी ने कांग्रेस की राजनीति को अन्य नेताओं के हवाले कर अपना ध्यान छुआछूत,गरीबी और मद्यपान समाप्त करने के कार्यक्रमों में लगाना शुरू कर दिया। उनके इस फैसले से भारतीय राजनीति का मंच एक बार फिर से खाली था जिन्ना को पैर पसारने के लिए।

अंग्रेज़ शासक वर्ग दोनों समूहों को उकसाया करता था, जिससे दोनों समुदायों ने एक दूसरे पर अविश्वास करना सीख लिया था। साम्प्रदायिक दंगे आम बात हो गई थी। देश भर में साम्प्रदायिक दंगे हो रहे थे। इनमें दिल्ली, गुलबर्गा, नागपुर, लखनऊ, शाहजहांपुर, जबलपुर के दंगे मुख्य थे। लेकिन सबसे भयंकर दंगा कोहाट में हुआ।

सितम्बर में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए 21दिन का उपवास

सितंबर में नार्थ-वेस्ट फ्रटिंयर के एक सैन्य चौकीकोहाट नगर में बर्बरक़ौमी दंगे हो गए थे। यहां एक क़ौम के लोगों ने दूसरी क़ौम के लोगों को मार डाला था और उनके घर जला दिए थे। समें 155लोक मारे गए।इस घटना की प्रतिक्रिया सारे देश में हुई। यह कैसा पागलपन था, जहां एक भाई दूसरे भाई का गला काटने पर उतारु था। गांधीजी को लगा कि उनकी शुद्ध भावना में कहीं कोई कमी रह गई है, तभी हिंदू-मुसलमान ऐसे पागलपन पर आमादा हैं। ऐसी ग़लती का गांधीजी के पास एक ही उपाय था। उपवास द्वारा प्रायश्चित और आत्म शुद्धि ताकि देश के लोगों को सन्मति प्राप्त हो। गांधीजी जेल में महीनों तक बीमार रहे। फिर अपेंडिक्स को तुरन्त निकालना पड़ा। घाव धीरे-धीरे ठीक हुआ। स्वास्थ्य लाभ में देरी हुई। कई सप्ताह तक तनावपूर्ण बातचीत और फिर कई सप्ताह तक कठिन दौरे ने उन्हें थका दिया। राजनीतिक स्थिति ने उन्हें उदास कर दिया; ऐसा लगा जैसे वर्षों का काम व्यर्थ हो गया। हिंदू-मुस्लिम लड़ाई की लगातार रिपोर्ट और कलह, घृणा और निराशा का माहौल उनके शरीर और आत्मा पर भारी पड़ रहा था। वह पचपन वर्ष के थे। उन्हें पता था कि इक्कीस दिन का उपवास घातक हो सकता है। उन्हें पीड़ा सहने में कोई खुशी नहीं थी। यह उपवास सर्वोच्च उद्देश्य - मानव के सार्वभौमिक भाईचारे - के प्रति कर्तव्य द्वारा निर्धारित किया गया था।

17सितम्बर, 1924को दिल्ली में शौकत के छोटे भाई मौलाना मुहम्मद अली के घर में उन्होंने 21दिन का उपवास आरंभ किया। मोहम्मद अली कांग्रेस के कट्टर समर्थक थे, हिंदू-मुस्लिम दोस्ती के हिमायती थे। उपवास की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा, 'मैं जो कुछ भी कहता या लिखता हूं, वह दोनों समुदायों को एक साथ नहीं ला सकता है।''इसलिए मैं आज से 6 अक्टूबर बुधवार तक अपने ऊपर इक्कीस दिन का उपवास रख रहा हूं। मैं नमक के साथ या बिना नमक के पानी पीने की स्वतंत्रता सुरक्षित रखता हूं। यह एक तपस्या और प्रार्थना दोनों है... मैं अंग्रेजों सहित सभी समुदायों के प्रमुखों को सम्मानपूर्वक आमंत्रित करता हूं कि वे मिलें और इस झगड़े को खत्म करें जो धर्म और मानवता के लिए एक अपमान है। ऐसा लगता है जैसे भगवान को हटा दिया गया है। आइए हम उन्हें अपने दिलों में फिर से स्थापित करें।'

यह उनका अब तक का सबसे लंबा उपवास था।दो मुस्लिम चिकित्सक लगातार उपस्थित रहते थे। ईसाई मिशनरी चार्ल्स फ्रीयर एंड्रयूज नर्स के रूप में सेवा करते थे।उपवास के दूसरे दिन गांधी ने यंग इंडिया के लिए 'विविधता में एकता'पर एक पेज लंबा निवेदन लिखा। उन्होंने जोर देकर कहा, 'इस समय की जरूरत एक धर्म नहीं बल्कि विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच आपसी सम्मान और सहिष्णुता है।'छठे दिन बिना खाए उन्होंने एक पेज का लेख लिखा, जिसका अंत था, 'बाइबिल की एक आयत को दूसरे शब्दों में कहें तो, अगर यह अपवित्रता नहीं है। "पहले हिंदू-मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता का उन्मूलन और चरखा और खद्दर (घर में सूत कातना) की तलाश करो और सब कुछ तुम्हें मिल जाएगा।'उपवास शुरू होने के बारह दिन बाद उन्होंने प्रकाशन के लिए 112 शब्द लिखे: 'अब तक यह संघर्ष और भारत की सरकार बनाने वाले अंग्रेजों के बीच हृदय परिवर्तन की चाहत रही है। यह परिवर्तन अभी आना बाकी है। लेकिन फिलहाल इस संघर्ष को हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हृदय परिवर्तन में बदलना होगा। स्वतंत्रता के बारे में सोचने से पहले उन्हें एक-दूसरे से प्यार करने, एक-दूसरे के धर्म को सहन करने, यहां तक ​​कि पूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों को भी सहन करने और एक-दूसरे पर भरोसा करने के लिए पर्याप्त साहसी होना चाहिए। इसके लिए खुद पर विश्वास की आवश्यकता होती है। और खुद पर विश्वास भगवान पर विश्वास है। अगर हममें वह विश्वास है तो हम एक-दूसरे से डरना बंद कर देंगे।'बीसवें दिन उन्होंने एक प्रार्थना लिखी: 'अभी मैं शांति की दुनिया से संघर्ष की दुनिया में प्रवेश करूँगा। जितना अधिक मैं इसके बारे में सोचता हूँ उतना ही अधिक असहाय महसूस करता हूँ... मैं जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं कर सकता। भगवान सब कुछ कर सकते हैं। हे भगवान, मुझे अपना साधन बनाओ और मुझे अपनी इच्छानुसार उपयोग करो। मनुष्य कुछ भी नहीं है। नेपोलियन ने बहुत योजनाएँ बनाईं और खुद को सेंट हेलेना में कैदी पाया। शक्तिशाली कैसर ने यूरोप के ताज पर निशाना साधा और एक निजी सज्जन की स्थिति में आ गया। भगवान ने ऐसा चाहा। आइए हम ऐसे उदाहरणों पर विचार करें और विनम्र बनें।'बीस दिन 'अनुग्रह, विशेषाधिकार और शांति के दिन'थे।

उनके उपवास के इस समाचार से देश सहम गया। इन्हीं दिनों इंदिरा गांधी पहली बार गांधीजी से मिली थीं। एक सप्ताह के भीतर दिल्ली में एक विशाल 26सितम्बर से 2अक्तूबर तक ‘एकता सम्मेलन’हुआ। देश के कोने-कोने से प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए, जिनमें से प्रमुख थे, डॉ. वेस्ट कॉट, श्रीमती एनी बेसंट, अलीबंधु, स्वामी श्रद्धानंद और महामना मालवीय जी। सम्मेलन में धार्मिक मामलों में हिंसा और ज़ोर-ज़बरदस्ती की घोर निंदा की गई। इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया कि दोनों क़ौमों में सद्भावना पैदा किया जाएगा और आपसी संदेह को मिटाया जाएगा।

उपवास शुरू करने के इक्कीस दिनों बाद 8 अक्तूबर को दशहरे के दिन, गांधीजी ने सभी संप्रदायों के नेताओं की उपस्थिति में अपने इस ऐतिहासिक उपवास को तोड़ा। उस दिन सुबह चार बजे से उन्होंने  एंड्रयूज को सुबह की प्रार्थना के लिए बुलाया। बापू गहरे रंग की शॉल में लिपटे हुए थे और एंड्रयूज ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें अच्छी नींद आई है। उन्होंने जवाब दिया, "हाँ, वास्तव में बहुत अच्छी नींद आई।"यह देखकर एंड्रयूज को खुशी हुई कि उनकी आवाज़ पिछली सुबह की तुलना में मजबूत थी, न कि कमज़ोर।'प्रार्थना के बाद, बहुत से लोग दर्शन के लिए आए।

सुबह करीब 10 बजे महात्माजी ने एंड्रयूज को बुलाया और कहा, 'क्या तुम्हें मेरे पसंदीदा ईसाई भजन के शब्द याद हैं?'एंड्रयूज ने कहा, "हाँ, क्या मैं इसे अभी गाऊँ?"'अभी नहीं,'उन्होंने उत्तर दिया, लेकिन मेरे मन में यह है कि जब मैं अपना उपवास तोड़ूँ, तो हम धार्मिक एकता को व्यक्त करने के लिए एक छोटा सा समारोह कर सकें। मैं चाहूँगा कि इमाम साहब कुरान की शुरुआती आयतें पढ़ें। फिर मैं चाहूँगा कि तुम ईसाई भजन गाओ, फिर सबसे आखिर में मैं चाहूँगा कि विनोबा उपनिषदों का पाठ करें और बालकृष्ण वैष्णव भजन गाएँ...'वह चाहते थे कि सभी सेवक उपस्थित हों।

12का घंटा बजते ही गांधीजी ने सबको बुलाया। इमामसाहब, बालकोबा, एण्ड्र्यूज, अलीबंधु, बेगम सा., देशबंधु, वासंती देवी, मोतीलाल नेहरू, राजकुमारी अमृत कौर, जवाहरलाल नेहरू, कमला नेहरू आदि पहुंचे। मुहम्मद अली गांधीजी से लिपटकर रोने लगे। डॉ. अंसारी की आंखों से आंसू बह रहे थे। इमाम साहब ने क़ुरान पहला सुरा गाया। एण्ड्र्यूज ने ईसा-मसीह के भजन गाए। विनोबा और बालकोबा ने उपनिषद और वेद के मंत्रों का उच्चारण किया गया। ‘वैष्णव जन’ गाया। डॉ. अंसारी के हाथ से बापू ने नारंगी का रस ग्रहण किया। सी.एफ़. एण्ड्र्यूज ने इस सम्मेलन की सफलता पर टिप्पणी की थी, दिल एक-दूसरे के नज़दीक आ गए थे

उपवास द्वारा गांधीजी दंगों में प्रदर्शित अमानुषिकता पर पश्चाताप करने और सांप्रदायिक कीटाणुओं के प्रसार को रोकने की कोशिश की। लेकिन उसका बहुत कम असर हुआ और नज़दीक आए दिल ज़्यादा समय तक पास-पास न रह सके। उपवास के फलस्वरूप एकता सम्मेलन हुए लेकिन सद्भाव की परिस्थिति नहीं पैदा हो सकी। बढती हुई हिंसा के बीच गांधीजी ने अपने को असहाय पाया। उन्होंने पीड़ा के साथ लिखा, मेरी एकमात्र आशा प्रार्थना में और उसके उत्तर में निहित है।

उपवास समाप्त होने के बाद गांधीजी को यह बात समझ में आ गई कि स्वराज, जो कभी उनकी पहुंच में था, अभी भी दूर है और हिंदू-मुस्लिम एकता को फिर से नई नींव से बनाना होगा और राजनीति से हटने की एक लंबी, धीमी प्रक्रिया शुरू हुई। उन्होंने चरखा थामे रखा। उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की, अपार भीड़ को संबोधित किया, चरखे के महत्व और अहिंसक कार्यों की आवश्यकता पर जोर दिया और उन्होंने अछूतों पर एक प्रवचन भी दिया। एक बार, जब वे सार्वजनिक रूप से चरखा चला रहे थे, तो उन्होंने कहा: "यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि मैं जो भी धागा खींचता हूँ, उससे मैं भारत का भाग्य गढ़ रहा हूँ।"

***     ***  ***

मनोजकुमार

 

पिछलीकड़ियां-  राष्ट्रीयआन्दोलन

संदर्भ :यहाँ पर

 


Viewing all articles
Browse latest Browse all 465

Latest Images

Trending Articles



Latest Images

<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>