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बिगड़े लड़के

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गांधी और गांधीवाद-156

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बिगड़े लड़केDSC00078

टॉल्सटॉय फार्म में गांधी जी ने सह-शिक्षा का प्रयोग किया। लड़के-लड़कियां वहां आज़ादी से साथ उठते-बैठते। इस कारण आश्रम जीवन में कुछ परेशानियां भी आईं। आश्रम में लड़के और लड़कियां मुक्त रूप से मिलते थे। लड़के और लड़कियों को साथ नहाने के लिए भेजा जाता। इसके पहले गांधी जी ने उन्हें मर्यादा धर्म के बारे में विस्तार से समझाया था। स्नान का समय नियत था। लड़के-लड़कियां साथ जाते। गांधी जी भी उसी वक़्त वहां पहुंचते। गांधी जी उन बच्चों पर एक मां की तरह नज़र रखते थे। रात में सभी खुले बारामदे में सोते। दो बिस्तरों के बीच मुश्किल से तीन फुट का अंतर होता। स्कूल के युवकों को इस इस बात के लिए प्रेरित किया जाता कि बीमारी में वे एक-दूसरे की सेवा करें।

यहां कुछ बिगड़े लड़के भी थे। इनके कारण वहां का वातावरण दूषित हो रहा था। गांधी जी के अपने बच्चे भी उनकी संगति में थे। कालेनबाख ने गांधी जी को बताया कि लफ़ंगे लड़के के साथ रहकर उनके खुद के तीनों लड़के बिगड़ रहे हैं। उन्हें मना करें कि वे उनके साथन घूमें-फिरें। लेकिन गांधी जी ने ऐसा करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि वे अपने पराए में भेद नहीं कर सकते। आगे चलकर उनके अपने बच्चों में गहरे विकार आ गए थे। कस्तूर को यह सब देख-सुनकर डर लगा रहता था। उनके बेटे बड़े हो रहे थे। ये उम्र ऐसी थी जब लड़के-लड़कियों को एकसाथ रखना खतरे से खाली नहीं था। उन्होंने गांधी जी को ऐसा प्रयोग करने के बारे में चेतावनी भी दी थी।

एक दिन किसी विद्यार्थी ने गांधी जी को ख़बर दी कि एक लड़के ने दो लड़कियों के साथ मज़ाक़ किया है। गांधी जी ने जांच की तो उन्हें पता लगा कि बात सच है। उन्होंने युवकों को समझाया। लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं था। वे चाहते थे कि दोनों लड़कियों के शरीर पर कोई चिह्न हो, जिससे हर युवक यह समझ सके कि लड़कियों पर बुरी नज़र नहीं डाली जा सकती। लड़कियां भी यह समझ सकें कि उनकी पवित्रता पर कोई हाथ नहीं डाल सकता। ऐसा कौन सा चिह्न दिया जाए इस पेशोपेश में वे रात भर सो नहीं सके। सुबह में उन्होंने लड़कियों को बुलाया। उन्हें समझाया और सलाह दी कि वे उन्हें उनके केश कतर देने की इजाज़त दें। बड़ी महिलाओं को भी उन्होंने बात समझाई। सभी ने गांधी जी के मकसद को समझा और इसकी इजाज़त उन्हें दे दी। गांधी जी ने उन लड़कियों के केश काट दिए। इसका परिणाम अच्छा रहा। इसके बाद लड़कों ने इस तरह का दुस्साहस नहीं किया।

एक सह-शैक्षिक प्रयोग में मठों जैसे ब्रह्मचर्य को बनाए रखना हमेशा आसान नहीं होता। यौन संबंधी दुस्साहस को गांधी जी सबसे अधिक पापपूर्ण भटकाव मानते थे। एक बार एक लड़की बीमार पड़ी। एक लड़का, गांधी जी की हिदायतों के मुताबिक, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से उसका इलाज कर रहा था। लड़की को फ़ायदा भी हो रहा था। इसी बीच कानाफ़ुसी भी शुरू हो गई। गांधी जी ने किसी भी अफ़वाह को मानने से इंकार कर दिया। वे टॉल्सटॉय फार्म पर थे और ये युवक फिनिक्स में। एक दिन गांधी जी ने सुना कि उनके बेटे और कुछ अन्य युवकों ने यौन भावनाओं के वशीभूत होकर उनके विश्वास के प्रतिकूल काम किया है। अभी तक तो वे मानते थे कि शादी और यौनाचार के बारे में उनके विचारों को उनके बेटों ने आत्मसात कर लिया होगा। लेकिन जब फीनिक्स बस्ती में हुए इस “नैतिक भूल” (संभवतः विषयासक्ति संबंधी) का पता चला, और यह सुना कि उनके बेटे ने भी पशुवत व्यवहार किया है, तो उन्हें बेहद गहरा सदमा लगा। वे बिल्कुल चुप हो गए। एकांतवास में चले गए। उन्होंने अपना सभी समाज कार्य बंद कर दिया। वे ट्रांसवाल से नेटाल चले गए। कई दिनों के बाद उन्होंने मुज़रिमों से बात की।

लड़कों को तो उन्होंने माफ़ कर दिया लेकिन युवाओं के पाप का प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने सात दिनों का उपवास रखा। यह उनके जीवन के 18प्रसिद्ध व्रतों में पहला था। दूसरों में दोष देखने के बजाए अपने को दोषी समझना उनका जीवन भर का धर्म रहा। अपने संरक्षितों के दुराचरण के लिए उन्होंने ख़ुद को दोषी माना। इसके प्रायश्चित के लिए उन्होंने सात दिनों के व्रत का और साढ़े चार मास तक दिन में केवल एक बार भोजन करने का दंड खुद को दिया। प्रायश्चित, प्रार्थना, आत्मानुशासन या शुद्धिकरण के रूप में उपवास उन सभी के लिए भीषण रूप ले चुकी थी जो उन्हें प्यार करते थे। उपवास की समाप्ति तक वे डर के साये में जीते और इनमें से कई तो भय व प्रायश्चित के मारे उनके साथ उपवास भी रख लेते। हालांकि वे जो यह सब कुछ करते वे तर्कहीन होते, लेकिन उसका प्रभाव अवश्य पड़ा और यह सब उन्होंने अपनी अंतरात्मा के निर्देश पर किया।

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