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गांधी और गांधीवाद 2. लिखावट

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गांधीऔर गांधीवाद


 

     महात्मा गाँधी

 

 2. लिखावट

मनोज कुमार

मत्स्यपुराण में कहा गया है,

शीर्षोपेतान्‌ सुसम्पूर्णान्‌‍ समश्रेणिगतान्‌‍ समान्‌‍।

आन्तरान्‌‍ वै लिखेद्यस्तु लेखक: स वर: स्मृत:॥

अर्थात्‌ ऊपर की शिरो रेखा से युक्त, सभी प्रकार से पूर्ण, समानान्तर तथा सीधी रेखा में लिखे गए और आकृति में बराबर अक्षरों को जो लिखता है,वही श्रेष्ठ लेखक कहा जाता है।अच्छालेखन तो ज्ञान का प्रतीक होता है। सुंदर हस्तलेखन सम्पूर्ण शिक्षा का द्योतक है।

गांधी जी की लिखावट का अक्षर बहुत ख़राब थी। बचपन में गांधीजी यह मानते थे कि पढाई में सुन्दर लेखन ज़रूरी नहीं हैवे अच्छे लेखन की अवहेलना कर अपना नुकसान ही करतेरहे।उनका यह विचार विलायत जाने तक बना रहाबाद में जब वे दक्षिण अफ्रीका पहुंचे और वकीलों के सुन्दर,मोती के दानों जैसे अक्षर देखते, तो उन्हें काफी पछतावा होता थाफिर तो वे कहा करते थे,'बैड हैंडराइटिंग इज़ द सिम्बल ऑफ इमपरफेक्ट एजुकेशन अर्थात लिखावट के अक्षर बुरे होना अपूर्ण शिक्षा की निशानी है। लेकिन पके घड़े पर पानी कहीं चढ़ता है! बचपन में गांधी जी अपना अक्षर सुधार नहीं पाए। बड़े होकर प्रयास करके भी वह अच्छा नहीं हो सका।

गांधीके अनुसार बच्चों को लिखना सीखने से पहले लिखावट की कला सिखाई जानी चाहिएवो कहा करते थे कि अच्छे अक्षर के लिए विद्यार्थियों को चित्रकला सीखनी चाहिए।इससे अक्षर सुन्दर होंगेगांधीजी के सचिव महादेव देसाई की लिखावट बहुत सुंदर थी। वायसराय को जाने वाले पत्र गांधीजी हमेशा महादेव जी से ही लिखाते थे। 

लेकिन अगर हम गौर से देखें तो हम पाएंगे कि गांधीजी की लिखावट उनके व्यक्तित्व के दो महान पहलुओं को उजागर करती है - सादगी और दृढ़ संकल्प। गांधी की महानता उनकी सादगी में थी। उनकी लिखावट उनकी स्पष्टवादी और ईमानदार व्यक्ति की छवि को दर्शाती है। गांधीजी के बारे में एक और रोचक बात यह है कि वे  अपने सीधे व उल्टे दोनों हाथों से लिखा करते थे।लिखते-लिखते जब एक हाथ थक जाता तो वे दूसरे हाथ से लिखना शुरू कर देते थे।छात्र काल से ही उन्हें तरह-तरह की पुस्तकें पढ़ने का चाव था। लिखने में भी उन्हें महारत हासिल थी। एक शब्द भी उनकी कलम से बेवजह नहीं निकलता था। धार्मिक पुस्तकों से उन्हें बड़ा लगाव था। उनका मानना था कि धर्म के बिना किसी भी व्यक्ति का अस्तित्व पूर्ण नहीं है।गांधीजी को उर्दू, अरबी और फारसी भी आती थी।गांधीजी एक दक्ष अनुवादक भी थे। रस्किन की विख्यात पुस्तक 'अनटू द लास्ट'का अनुवाद गांधीजी ने गुजराती में किया और यह 'सर्वोदय'के नाम से प्रचलित हुआ।

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