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गांधी और गांधीवाद 3. गांधीजी का बचपन

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गांधीऔर गांधीवाद

                          महात्मा गांधी

 

 

 











3. गांधीजी का बचपन(1870-81)

 मनोज कुमार

प्रारंभिकशिक्षा

बाल्यकाल में मोहनदास एक जगह स्थिर हो कर नहीं बैठ पाते थेया तो वे खेलने में व्यस्त रहा करते थे या फिर घूमने फिरने मेंमोहन को पोरबंदर के एक प्रारंभिक विद्यालय में दाखिल किया गया। वहां उन्हें पहाड़े याद रखना बड़ा कठिन लगता था।वह एक औसत दर्ज़े के छात्र थे। स्वभाव से शर्मीले और दब्बू थे। बात करने से घबराते थे और खेलकूद से दूर रहते थे।सात साल की उम्र में गांधी जी को पोरबंदर छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके पिताजी राजकोट के दीवान बना दिये गए। पोरबंदर से उनके पिताजी राजस्थानिक कोर्ट के सदस्य बनकर राजकोट आए। बालक मोहन को पोरबंदर की याद आती थी, उसे नीला समुद्र और बंदरगाह में जहाज़ों की याद आती थी।राजकोट में गांधीजी ने प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और आगे की शिक्षा अल्फ्रेड स्कूल में प्राप्त की।हर सुबह वह समय पर स्कूल जाते थे और स्कूल खत्म होते ही वापस घर भाग जाते थे। किताबें ही उनकी एकमात्र साथी थीं और वह अपना सारा खाली समय अकेले ही पढ़ने में बिताते थे।गांधीजी मेहनत और लगन से अपने पाठों को पढ़ा करते थे। लेकिन वह रटकर नहीं सीखते थे। संस्कृत में कमजोर थे। ज्यामिति उन्हें सबसे अच्छी लगती थी क्योंकि इसमें तर्क करना पड़ता था।

पिताकाप्रभाव

गांधीजीकेपिताकरमचंदगांधीस्कूलीशिक्षाज़राभीनहींपाईथी।लेकिन उन्हें दुनियादारीकाबहुतज्ञानथा।वहएकसांसारिकआदमीथे।धर्मऔरआध्यात्ममेंउन्हेंकोईखासरुचिनहींथी।हांउनकेघरपरजैनमुनियों, पारसीदरवेशोंऔरमुस्लिमऔलियोंकाआनाजानलगारहताथा।यदा-कदाउनकीचर्चाओंकोसुननेकाअवसरगांधीजीकोमिलजायाकरताथा।इसतरहकईधर्मोंकेविद्वानोंकोसाथबैठकरमैत्रीपूर्णढंगसेचर्चाकरतेदेखधार्मिकसहिष्णुताकीछापबालकगांधीकेमनपरअंकितहोगई।

माताकाप्रभाव

मातापुतलीबाईएकयोग्यमहिलाथीं।रनिवासमेंउनकीइज़्ज़तथी।राजपरिवारकीमहिलाओंसेउनकीमैत्रीथी।घर-परिवारकेकामोंमेंरमेरहनाउन्हेंकाफीसुहाताथा।कपड़ोंऔरगहनोंकाशौकउन्हेंज़राभीनहींथा।पढी-लिखीवोखासनहींथीं।धर्मग्रंथोंमेंभीपारंगतनहींथीं,लेकिनवहएकधार्मिकमहिलाथीं।प्रार्थनाकरना, मंदिरजाना, व्रत-उपवासकरना उनकेरोज़ानाकेकार्यक्रमथे।उनकागांधीजीकेव्यक्तित्वपरकाफ़ीप्रभावथा।गांधीजीनेभीनियम-संयम, व्रत-उपवासऔरप्रार्थनाउनसेहीसीखीथी।इसकेअलावाजोबातउन्होंनेअपनीमातासेसीखीवहथीअपनेऔरदूसरोंकेबच्चेमेंअंतरनहींकरना।बादमेंसबकोएकनज़रसेदेखनाबापूकेआश्रमजीवनकाअंगबनगया।उन्होंनेकहाभीहै, मैंनेसदाचारऔरपवित्रजीवनकापाठअपनेमाता-पितासेसीखा।

सभीधर्मोंकोसमानदृष्टिसेदेखना

बचपनमेंमातापुतलीबाईउन्हेंभगवानशिव, विष्णुऔरजैनमंदिरोंकेसाथ-साथपीर-पैगम्बरोंकीसमाधियोंपरलेजायाकरतीथीं।काबागांधीकेमकानमेंसभीधर्मोंकेअनुयायीआते-जातेरहतेथे।हिन्दूपंडितों, जैनसाधुओं, मुसलमानमुल्लाओंऔरपारसीसन्तोंकाघरमेंआना-जनालगारहताथा।उनकीबातेंबालकमोहनबड़ेध्यानसेसुनते।इसकाउनपरयहअसरपड़ाकिवेसभीधर्मोंकोसमानदृष्टिसेदेखनेलगे।वेयहसमझचुकेथेकिसभीधर्मईश्वरकीओरजानेकेरास्तेहैं।

श्रवणपितृ-भक्तिनाटककाप्रभाव

एक बार उनके मन में कोई बात बैठ जाती तो उसको निकाला नहीं जा सकता था।बचपनमेंगांधीजीनेश्रवणपितृ-भक्तिनामकनाटकपढ़ाथा।इससेवेबहुतप्रभावितहुए।श्रवणकुमारकाअपनेमाता-पिताकोकंधेपरबहंगीमेंबिठाकरतीर्थकरानेलेजानेवालेदृश्यनेउनकेमनपरगहराप्रभावडाला।उनहोंने निश्चय किया, 'मुझे भी श्रवण जैसा बनना है।'माता-पिताकीसेवाकोउन्होंनेअपनाआदर्शबनाडाला।माता-पिता की आज्ञा का पालन उनका मूल-मंत्र हो गया।

"सत्यवादीहरिश्चन्द्रनाटककाप्रभाव

एक नाटक मंडली गांधीजी के शहर में आई थी। इस मंडली ने ‘सत्यवादी हरिश्चन्द्र’ नाटक दिखलाया था। हरिश्चन्द्र” ने सत्य के लिए हर चीज़ का बलिदान कर दिया तथा प्राण त्यागने के पूर्व उन्हेंदारुण दुखों का निरंतर सामना करना पड़ा था। नाटक सत्य हरिश्‍चंद्र का गांधीजी के व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव पड़ा। गांधीजी के मन में हमेशा चलता रहता की हरिश्चंद्र की तरहसब सत्यवादी क्यों नहीं होते?उन्होंने यह मान लिया कि हरिश्चंद्र पर जैसी विपत्तियाँ पडीं वैसी विपत्तियों ओ भोगना और सत्य का पालन करना ही जीवन का वास्तविक सत्य हैहरिश्चंद्र की सत्यवादिता और वचन-पालन ने बालक मोहनदास को सत्य का पुजारी बना दिया।

भविष्य का गांधी

हालाकि गांधीजी अपने बचपन में भारत में पैदा हुए लाखों अन्य बच्चों से अलग नहीं दिखते थे, फिर भी वह कोई साधारण बच्चा नहीं थे। धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व का निर्माण हो रहा था। उन्हें एक महान साम्राज्य से लड़ना था। और उनकी लड़ाई अहिंसक होने वाली थी। उन्हें बिना हथियार उठाए अपने देश को आज़ाद कराना था। लोग उन्हें महात्मा कहने वाले थे। उस महात्मा को देश के लिए अपना जीवन बलिदान करना था।

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