बुद्धिजीवी किंकर्त्तव्यविमूढ़ है
श्यामनारायण मिश्र
गज समस्या का उठाता सूंढ़ हैजीविका का प्रश्न पूरा रूढ़ है
एक भद्दा अंग भी ढंकता नहीं
चीथड़ों की हो गई हड़ताल
मौत की मछली फंसाने के लिए
भूख बुनती हड्डियों के जाल
वैताल सा निर्वाह लटका गूढ़ है
हर शहर है बागपत की आत्मा
अलीगढ़, दिल्ली, मुरादाबाद,
गांव की हर गली में है घूमता
जातीयता का क्रूरतम उन्माद
हार बैठा मूढ़ छप्पर ढूंढ़ है
राजनैतिक दल जलाने को खड़े
आसाम की यह अर्द्ध जीवित लाश
आदमी के तांडव की देख क्षमता
तड़तड़ा कर टूटता आकाश
बुद्धिजीवी किंकर्त्तव्यविमूढ़ है
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!