गांधी और गांधीवाद
साहसकोईशारीरिकविशेषतानहोकरआत्मिकविशेषताहै। - महात्मा गांधी
59. महारानी विक्टोरिया का हीरक
जयंती समारोह
राजकोट - जुलाई 1896
राजनिष्ठा
गांधीजी को अभी भी विश्वास था कि ब्रिटिश शासन “पूरी दुनिया के लिए
फायदेमंद”है। हालाकि वे ब्रिटिश राजनीति
में दोष देखते थे, फिर भी कुल मिलाकर उनकी नीति उन दिनों गांधीजी को अच्छी लगती थी। वे
मानते थे कि ब्रिटिश शासन और शासकों का रुख़ जनता का पोषण करने वाला है। उनकी
दृष्टि में भारत की समस्याओं का हल पारस्परिक संबंधों को सुधारने और परस्पर
समझदारी और सद्भावना बढ़ाने से संभव था। गांधीजी की राजनिष्ठा शुद्ध थी। उन दिनों
वे ब्रिटिश शासन के प्रति पूर्ण सद्भावना रखते थे। उनकी राजनिष्ठा की जड़ें सत्य पर
उनके स्वाभाविक प्रेम में निहित थी। सवाल राजनिष्ठा का हो या किसी अन्य वस्तु का
स्वांग भरना उनकी प्रकृति में नहीं था। नेटाल में जब वे किसी सभा में जाते,
तो वहां, “गॉड सेव द किंग” (ईश्वर राजा की रक्षा करे) गीत अवश्य गाया जाता था। उन्हें यह लगता कि
उन्हें इसे गाना चाहिए। वे गाते थे। राजकोट में भी उन्होंने इसे अपने बेटों, आठ साल के हरिलाल और चार साल के
मणिलाल और संयुक्त परिवार के दो अन्य बच्चों को सिखाया। ब्रिटिश राजनीति में दोषतो वह तब भी देखते
थे, फिर भी कुल मिलाकर
उन्हें वह नीति अच्छी लगती थी। उससमय वह मानते थे कि ब्रिटिश शासन और शासकों का रुख कुल मिलाकर जनता
काहित करने वाला है। इसलिए सिंहासन के प्रति अपनी वफादारी को
सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने का कोई मौका नहीं छोड़ा।
इसके उलट दक्षिण अफ़्रीका में वे वर्ण-द्वेष देखते थे। वे
मानते थे कि दक्षिण अफ़्रीका में प्रवासी भारतीयों की समस्या सामयिक और स्थानीय हैऔर ब्रिटिश
संविधान और ब्रिटिश परंपरा की भावना के प्रतिकूल था।उन्होंने अंग्रेज़ों के राष्ट्रगीत लगन के साथ सीख ली थी और नेटाल
इंडियन कान्ग्रेस और अन्य सभाओं में “गॉड सेव द किंग” गाया जाता तो वे भी अपना सुर
उसमें मिलाया करते। बिना किसी आडंबर के जब भी कभी राजनिष्ठा प्रदर्शित करने का मौक़ा
मिलता, सत्ताईस वर्षीय गांधीजी ज़रूर करते। पर अपनी इस राजनिष्ठा को उन्होंने कभी नहीं भुनाया। व्यक्तिगत लाभ
उठाने का तो विचार कभी भी उनके मन में नहीं आया। राजभक्ति को वे ऋण मानकर हमेशा
उसे चुकाया ही। सब मिलाकर, वे ब्रिटिश साम्राज्य को अकल्याणकारी नहीं मानते थे।
हीरक जयंती समारोह की तैयारियां
जब गांधी राजकोट पहुंचे तो
महारानी विक्टोरिया के सम्राज्ञी पद की हीरक जयंती समारोह की तैयारियां बड़े
ज़ोर-शोर से चल रही थी। इस अवसर को भव्य तरीक़े से मनाए जाने की योजना थी। उसके लिए राजकोट में भी एक समिति बनी। वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे
जिसे ब्रिटिश राष्ट्रगीत आता था, इसलिए सिंहासन के प्रति निष्ठा के कारण अंग्रेज़ों के तुल्य समानता
देते हुए गांधीजी को राजकोट में समिति का इंचार्ज बनाया गया। चूंकि वे वहां ब्रिटिश
राष्ट्रगान जानने वाले एकमात्र व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने स्थानीय छात्रों को इसके गायन के लिए प्रशिक्षित करने
का काम दिया गया। गांधीजी ने यह दायित्व स्वीकार तो कर लिया, लेकिन उन्हें उसमें दम्भ का दर्शन
हुआ। दिखावा बहुत होता था, जो गांधीजी को बिल्कुल ही पसंद नहीं था। समिति में रहें या न रहें इस
दुविधा में वे घिर गए। पर वचन के पक्के गांधीजी ने निश्चय किया कि अपने कर्तव्य का
पालन करेंगे।
सार्वजनिक सेवा गांधीजी की
राजनीति का मुख्य अंग थी। इस कार्यक्रम के तहत वृक्षारोपण भी रखा गया। इसमें भी
दम्भ और दिखावा ही ज़्यादा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह सिर्फ़ साहबों को ख़ुश
करने के लिए किया जा रहा हो। गांधीजी तो इस मत के थे कि अगर वृक्ष लगाना है तो दिल
से लगाया जाए, दबाव से नहीं। पर कहीं लोग उनके इस विचार पर उनकी हंसी न उड़ाएं, यह सोच कर गांधीजी ने अपने मन की बात
मन में ही रखी और अपने हिस्से के पेड़ लगा कर संतुष्ट हुए।
“गॉड सेव द किंग” गीत वे अपने परिवार वालों को सिखाते थे। सातवें एडवर्ड के राज्यारोहण
के अवसर पर उन्होंने इस गीत को ट्रेनिंग कॉलेज के विद्यार्थियों को भी सिखाया था।
बाद में यह गाना उन्हें खटका। उनकी आत्मा ने राष्ट्रगान के कुछ पहलुओं के खिलाफ
विद्रोह किया। खास कर इसकी निम्न पंक्तियां उनके
अहिंसावादी विचारधारा के विपरीत थीं,
उसके शत्रुओं का नाश कर,
उनके
षडयंत्रों को विफल कर।
उन्हें लगा कि यह गाना अहिंसक
लोगों को शोभा नहीं देता। शत्रु कहलाने वाले दग़ा ही देंगे यह कैसे मान लिया जाए।
यह कैसे कहा जाए कि शत्रु बुरे ही होंगे। ईश्वर से तो न्याय ही माँगा जा सकता है।
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मनोज
कुमार
संदर्भ :
1 | सत्य के प्रयोग– मो.क. गाँधी | 2 | बापू के साथ – कनु गांधी और आभा
गांधी |
3 | Gandhi Ordained in South
Afrika – J.N. Uppal | 4 | गांधीजीएक महात्मा की संक्षिप्त जीवनी – विंसेंट शीन |
5 | महात्मा गांधीजीवन और दर्शन – रोमां रोलां | 6 | M. K. GANDHI AN INDIAN
PATRIOT IN SOUTH AFRICA by JOSEPH J. DOKE |
7 | गांधी एक जीवनी, कृष्ण कृपलानी | 8 | गाांधी जीवन और विचार- आर.के . पालीवाल |
9 | दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास,
मो.क. गाँधी | 10 | The Life and Death
ofMAHATMA GANDHI byRobert
Payne |
11 | गांधी की कहानी - लुई फिशर | 12 | महात्मा गाांधी: एक जीवनी - बी. आर. नंदा |
13 | Mahatma
Gandhi – His Life & Timesby:
Louis Fischer | 14 | MAHATMA Life of
Mohandas Karamchand GandhiBy:
D. G. Tendulkar |
15 | MAHATMA GANDHI
By PYARELAL | 16 | Mohandas A True
Story of a Man, his People and an Empire – Rajmohan Gandhi |
17 | Catching
up with Gandhi – Graham Turner | 18 | Satyagraha – Savita Singh |
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