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बंजारा सूरज

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बंजारा सूरज 

श्यामनारायण मिश्र



किसे पता था सावन में भी
लक्षण होंगे जेठ के
आ बैठेगा गिद्ध सरीखे
मौसम पंख समेट के

बंजारा सूरज बहकेगा
पीकर गांजा भंग
जंगल तक आतंकित होगा 
देख गगन के रंग
स्वाती मघा गुजर जायेंगे
केवल पत्ते फेंट के

नंगी धरती धूल 
ओढ़ने को होगी मजबूर
कुदरत भूल जायेगी
सारे के सारे दस्तूर
चारों ओर दृश्य दीखेंगे
युद्ध और आखेट के

आंखों के आगे अब
दुनिया जली जली होगी
बिकने को मजबूर
जवानी गली गली होगी
नंगे चित्र छपेंगे पन्ने 
पन्ने खाली पेट के

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