आँच –119
आँच –119 आचार्य परशुराम राय आँच के पिछले अंकमें श्री देवेन्द्र पाण्डेयकी कविता पहिएकी गयी समीक्षा पर विद्वान मित्रों एव पाठकों ने काफी रोचक टिप्पणियाँ की...
View Articleनारी ब्लॉग के माध्यम से एक विचार-विमर्श का आयोजन
नारी ब्लॉग के माध्यम से एक विचार-विमर्श का आयोजन किया जा रहा है। यह एक प्रशंसनीय प्रयास है। इसे प्रतियोगिता का रूप दिया गया है जिसमें 15 अगस्त 2011 से 14 अगस्त 2012 के बीच में पब्लिश की गयी ब्लॉग...
View Articleअब ख़ुशी के गीत गाना व्यर्थ है
अब ख़ुशी के गीत गाना व्यर्थ हैश्यामनारायण मिश्रजल रहीं धू-धू दिशाओं की चिताएंअब ख़ुशी के गीत गाना व्यर्थ है जो मसीहा शांति के संदेश लाएजी चाहता है पांव उसके चूम लूंजहां मिटती हो ग़रीबी दीनतावह...
View Articleस्मृति शिखर से - 23 : मेरे जीवन का एक दिन
- करण समस्तीपुरीअपने देश में सितंबर मास की एक विशेषता यह है कि राष्ट्रीय संस्कृति जीवंत हो उठती है। पहले शिक्षक-दिवस फिर हिन्दी-दिवस। दोनों का मेरे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। मेरे सभी शिक्षकों का...
View Articleकरता छाया धूप एक जो धरती उसकी है
करता छाया धूप एक जो धरती उसकी हैश्यामनारायण मिश्रसदियों से चलते झूठे बैनामे और बहीपुरखों ने खातों की ब्याही धरती कभी नहींतीसों दिन बारहों महीनाएक करे जो ख़ून पसीनाकरता छाया धूप एक जोधरती उसकी...
View Articleस्मृति शिखर से – 24 : डढ़िया वाली
- करण समस्तीपुरीउसका नाम मुझे नहीं मालूम लेकिन पूरा गाँव नहीं तो कम से कम दो-चार टोले में वह इसी नाम से प्रसिद्ध थी। हमारे टोले के सभी घरों में उसका आना-जाना था। जमींदारों के दरबार भी जाती रहती थी।...
View Articleफ़ुरसत में ... तीन टिक्कट महा विकट
फ़ुरसत में ... 110तीन टिक्कट महा विकटमनोज कुमारहमारे प्रदेश में एक कहावत काफ़ी फ़ेमस है – तीन टिक्कट, महा विकट। इसका सामान्य अर्थ यह है कि अगर तीन लोग इकट्ठा हुए तो मुसीबत आनी ही आनी है। ऐसे ही कोई कहावत...
View Articleबंजारा सूरज
बंजारा सूरज श्यामनारायण मिश्रकिसे पता था सावन में भीलक्षण होंगे जेठ केआ बैठेगा गिद्ध सरीखेमौसम पंख समेट केबंजारा सूरज बहकेगापीकर गांजा भंगजंगल तक आतंकित होगा देख गगन के रंगस्वाती मघा गुजर जायेंगेकेवल...
View Articleआंच-120 : चांद और ढिबरी
आंच-120चांद और ढिबरीमनोज कुमारजिन्होंने वी.एस.नायपॉल, ए पी जे अब्दुल कलाम, रोहिणी नीलेकनी, पवन के वर्मा सहित कई लेखकों की पुस्तकों का हिंदी अनुवाद किया हो, उनकी साहित्यक सूझ-बूझ को अलग से रेखांकित करने...
View Articleभारतीय काव्यशास्त्र – 125
भारतीय काव्यशास्त्र – 125आचार्य परशुराम रायपिछले अंक में वक्रोक्ति अलंकार पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में अनुप्रास अलंकार पर चर्चा की जाएगी।वर्णों की समानता (आवृत्ति) को अनुप्रास कहा गया है-...
View Articleचर्खी हुई चाकरी
चर्खी हुई चाकरीश्यामनारायण मिश्रछूटे खेत खादसावन के मेहचर्खी हुई चाकरी निचुड़ी गन्ने जैसी देह। लापरवाही वाले लमहेओसारे की खाटपर्वों के मेलेकस्बे की हफ़्तेवारी हाटदूर छोड़ आई है गाड़ी अपने ग्यौंड़े गेह। अपने...
View Articleकविता - श्रद्धा-सुमन
श्रद्धा-सुमनआचार्य परशुराम रायक्या कहूँ बापू,आपके बन्दरों नेजीना हराम कर दिया -एक सुनता नहीं,एक देखता नहींऔर एक कुछ कहता नहीं।जो देखता है, बोलता नहीं,जो बोलता है, सुनता नहींऔर जो सुनता है,वह न देखता...
View Articleभारतीय काव्यशास्त्र – 126
भारतीय काव्यशास्त्र – 126आचार्य परशुराम रायपिछले अंक में अनुप्रास अलंकार पर चर्चा की गई थी। कुछ आचार्य अनुप्रास के तीन भेद- छेकानुप्रास, वृत्त्यानुप्रास और लाटानुप्रास मानते हैं। कुछ आचार्य इसके पाँच...
View Articleऐसा ही बचा हुआ गांव है
ऐसा ही बचा हुआ गांव हैश्यामनारायण मिश्रआमों के बाग कटेकमलों के ताल पटेभटक रहे ढोरों के ढांचेदूर-दूर तक बंजर फैलाव हैऐसा ही बचा हुआ गांव हैपेड़ पर गिलहरी से चढ़तेअध नंगे...
View Articleआंच-121 : माँ और भादो
आंच-121माँ और भादोमनोज कुमारअरुण चन्द्र रॉय की ताज़ी कविता “मां और भादो”को पढ़ते ही लगा कि इसे आंच पर लिया जाए। मां को केन्द्रीत इस कविता में कवि ने जहां यह दर्शाने की कोशिश की है कि भादो के मास में जहां...
View Articleभारतीय काव्यशास्त्र – 127
भारतीय काव्यशास्त्र – 127आचार्य परशुराम रायपिछले अंक में अनुप्रास अलंकार पर चर्चा समाप्त की गई थी। इस अंक में शब्दालंकार के अन्तर्गत यमक अलंकार पर चर्चा अभीष्ट है।काव्यप्रकाश में यमक अलंकार कि...
View Articleवह प्राचीन क़िला
वह प्राचीन क़िलाश्यामनारायण मिश्रआसमान से बातें करता,वह प्राचीन क़िला।हमको मरे हुए कछुए-सा,औंधा पड़ा मिला।गुंबद गले, छत्र टूटे,दीवारों में बीवांई।भव्य बावली में हैजल की जगह, सड़ी काई।जल के सपनों-सा...
View Articleभारतीय काव्यशास्त्र – 128
भारतीय काव्यशास्त्र – 128आचार्य परशुराम रायपिछले अंक में यमक अलंकार के भेदोपभेद पर चर्चा की गई थी। इस अंक में यमक अलंकार के संदर्भ में पुनरुक्तवदाभास पर चर्चा करने का विचार था। लेकिन यह एक मात्र...
View Articleतस्वीर
लघुकथातस्वीरमनोज कुमारउसने अपने मृत पिता की तस्वीर बेड रूम में लगा ली।रोज़ सुबह अपने जन्म-दाता को देखकर दिन की शुरुआत करता। तस्वीर के इर्द-गिर्द उसने अपनी, बीवी और बच्चों की तस्वीरें भी रख दीं, जैसे...
View Articleउदासी के धुएं में
उदासी के धुएं मेंश्यामनारायण मिश्रलौट आईंभरी आंखेंभींगते रूमाल-आंचल छोड़कर सीवान तक तुमको, ये गली-घर-गांव अब अपने नहीं हैं।अनमने से लग रहे हैंद्वार-देहरी खोर-गैलहरे दूर तक...
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